











- Brand: Pravasi Prem Publishing India
- Language: Hindi
- Weight: 214.00g
- Dimensions: 21.00cm x 14.00cm x 2.00cm
- ISBN: 9788198487674
यह पुस्तक न
केवल राजा नाहर सिंह के शासन की राजनीति और प्रशासन को व्याख्यायित करती है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित न्याय, धर्म और समाज के सिद्धांतों पर भी गहरी चर्चा करती
है। उन्होंने अपनी रियासत में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया, जो उस समय की समकालीन प्रथाओं से कहीं अधिक प्रगति और
खुलापन था।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की लपटों में जब
समूचा भारत जल उठा, तब
बल्लभगढ़ के वीर राजा नाहर सिंह ने अपनी छोटी-सी सेना को ब्रिटिश साम्राज्य के
विरुद्ध रणभूमि में उतार दिया। केवल 32 वर्ष की आयु में उन्होंने स्वाधीनता की
वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देने का संकल्प लिया। जब अंग्रेजों ने उन्हें
वफादारी की कीमत पर जीवनदान देने की पेशकश की, तो उन्होंने गर्व से उसे ठुकरा दिया।
अपने सम्मान और मातृभूमि के लिए वे तनिक भी नहीं डगमगाए।
आरोप लगाया गया कि उन्होंने
विद्रोहियों को धन, हथियार और
सैन्य सहायता दी। अंग्रेजी सत्ता ने उन्हें 9 जनवरी 1858 को चांदनी चौक में फांसी दे दी और उनकी
समस्त संपत्ति जब्त कर ली। बल्लभगढ़ का जाट राज्य पराधीन हो गया, परंतु उनके बलिदान की गूंज कभी मंद न
हुई। उनके सेनापति गुलाब सिंह सैनी और भूरा सिंह वाल्मीकि ने अंग्रेजों से अंतिम
दम तक लोहा लिया, परंतु
नियति ने उन्हें भी राजा नाहर सिंह के साथ शहीद होने का गौरव दिया।
चांदनी चौक के उस मनहूस दिन, जब स्वतंत्रता के इन दीवानों को फांसी
दी गई, तब हवा
में मातम का सन्नाटा नहीं, बल्कि
क्रांति की चिंगारियां घुल गईं। बल्लभगढ़ के रणबांकुरों की वह अंतिम चीखें इतिहास
के पन्नों में हमेशा के लिए अमर हो गईं—जो यह कहती रहीं कि भारत माता की
स्वतंत्रता की लड़ाई में प्राणों की बलि देना गर्व की बात है, हार नहीं।
यह पुस्तक न
केवल राजा नाहर सिंह के शासन की राजनीति और प्रशासन को व्याख्यायित करती है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित न्याय, धर्म और समाज के सिद्धांतों पर भी गहरी चर्चा करती
है। उन्होंने अपनी रियासत में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया, जो उस समय की समकालीन प्रथाओं से कहीं अधिक प्रगति और
खुलापन था।
डॉ. अमृतासिंह, समाजकेगौरवशालीइतिहासपर गंभीर शोध कर ऐसा लेखन करती हैं जिससे भारत ऐसे सशक्तराष्ट्रकेरूपमेंस्थापितहो , जहाँसमृद्धि, कल्याणऔरभाईचारासमानरूपसेविकसितहो सके । "भारतमेंसिविलसेवकोंकाप्रशिक्षण - लालबहादुरशास्त्रीराष्ट्रीयप्रशासनअकादमी, मसूरीकाएकसंगठनात्मकऔरकार्यात्मकअध्ययन" विषय पर सन 2005 में डॉक्टरेट, लेखिका के पास एक लंबा प्रशासनिक अनुबहव तो है ही, वे कई प्रतिष्ठित संस्थानों के शिक्षण और प्रशिक्षण से भी जुड़ी रही हैं । शास्त्रीय संगीत